Raw Thoughts For Poems

माया के खेल के  मध्य  में 

विचर रहा निरंकार। 

वोह हुशियारों की समझ से भी बाहर 

वोह नालायकों की समझ से भी बाहर। 

वोह परखना  चाहते हैं  शिव नर है या नारी 

इसी लिए जीत कर भी हो जाती है  हार।  

जो  समाधान  जरूरी है वोह करो 

बाकी सभ कोशिश बेकार। 

ਮਾਇਆ ਦੀ ਇਸ ਖੇਡ ਦੇ ਮੱਧ ਵਿੱਚ 

ਵਿਚਰ ਰਿਹਾ ਕਰਤਾਰ। 

ਉਹ ਹੁਸ਼ਿਆਰਾਂ  ਦੀ ਸਮਝ ਤੋਂ ਵੀ ਬਾਹਰ 

ਉਹ ਨਾਲਾਇਕਾਂ ਦੀ ਸਮਝ ਤੋਂ ਵੀ ਬਾਹਰ 

ਉਹ ਪਰਖਣਾ ਚਾਹੁੰਦੇ ਨੇ ਸ਼ਿਵ ਨਰ ਹੈ ਕੇ ਨਾਰੀ 

ਇਸੇ ਲਈ ਜਿੱਤ ਕੇ ਵੀ ਹੋ ਜਾਂਦੀ ਹੈ ਹਾਰ। 

ਜੋ ਅਸਲ ਹੱਲ ਹੈ ,ਜਰੂਰੀ ਉਹ ਹੈ

ਬਾਕੀ ਸਭ ਰੌਲਾ ਰੱਪਾ ਬਿਲਕੁਲ ਬੇਕਾਰ  


ज्योँ दूर रह रह कर हम को सताना कोई तुमसे सीखे 

ऊपर से ज्यों दाँत निकालना 

छुप छुप  कर आंसू बहाना कोई तुमसे  सीखे। 

इच्छा तो तुम भी रखते हो हमसे मिलने की 

पर कभी पास ना आना कोई तुमसे सीखे। 

दिल रखने के लिए मुसकुरा देते हो दूर से 

दूर रहने का रोज़  नया बहाना कोई तुमसे सीखे।  

ज़िंदगी के हर दुःख को आसानी से झेल जाते हो 

दूसरोँ के दिल टूटने से बचाना कोई तुमसे सीखे। 

चल इतना ही बहुत है जीने के लिए 

यह कह  कर  खुद को सनझाना कोई तुमसे सीखे। 

सीखने के लिए कितना कुछ है तुम्हारे पास 

हमारे पास कया है यह जान पाना कोई तुमसे सीखे। 

चल हट पगला खाली बातेँ बनाता है 

यह कह कर दूर भाग जाना कोई तुमसे सीखे। 

पास कभी आते नहीं बात कभी करते नहीं 

दूर  रह रह कर  प्यार जताना कोई तुमसे सीखे। 

दोसतो को इतना आसानी से  जाने  देते हो 

फिर  दिल में उनकी यादेँ वसाना कोई तुमसे सीखे। 

कभी दूर ना जाने का वायदा कर के 

फिर कभी वापस ना आना कोई तुमसे सीखे। 

मिलना चाहो तो आते क्यों नहीं 

हाल-ए -दिल बतलाते क्यों नहीं 

प्यार तो तुमसे करते हैं ना 

पता है तुम पर मरते हैं ना 

पास हमारे आते क्यों नहीं 

हाल-ए -दिल बतलाते क्यों नहीं 

काट लेंगे यादों के सहारे 

खुश रहना मेरे दोसत प्यारे 

बनेंगे एक दूजे के सहारे 

कभी तो मिल जाएंगे किनारे 

माना हम नासमझ हैं थोड़े 

तुम हम को समझते क्यों नहीं 

दूर रहो जा आओ  पास 

मत होना तुम कभी उदास 

दोस्त हो तुम मेरे ख़ास 

फिर मिलने की रखना आस 

हम चाहते तुम हक जताओ 

अपना हक जताते क्यों नहीं 

मिलना चाहो तो आते क्यों नहीं 

हाल-ए -दिल बतलाते क्यों नहीं 

अपना समझ कर डांट लो बेशक 

दुःख सुख हमसे बाँट लो बेशक 

साँस लेता हूँ हवा हो तुम 

मुझसे कब बोलो जुदा हो तुम

हसना रोना गले लगाकर 

गले से तुम लगाते क्यों नहीं 

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मिलने को मन करता रोज़ 

रहती दिल को तेरी खोज 

बसे हो दिल में धड़कन जैसे 

सामने तुम पर आते क्यों नहीं 

शरतें  रखकर प्यार नहीं होता 

स्कोचने वाला यार नहीं होता 

पूरा रख लो आधा रख लो 

फैसला कोई सुनाते क्यों नहीं 

जाना हो तो जा सकते हो 

कभी भी वापस आ सकते हो 

चाहिए नहीं जो साथ हमारा 

यादों से फिर जाते क्यों नहीं 

तुम में हम में फरक क्या है 

दूर रहने का तरक क्या है 

हमने तुमको अपना माना 

 तुम हमको अपनाते क्यों नहीं 



जिस एक (खुदा ) को सभ एक मानते है 

मानते है पर जानते नहीं हैं 

उस टुकड़ो में विभाजित हुए एक को 

फिर से एक देखने के लिए ही 

मैने एक को चुना 

अब उसी एक में देखता हूँ पूरी कायनात 

उसी एक में वस रही है मेरी सारी ज़िन्दगी 

ज़िन्दगी के सभ जज़बात ,सभ दुःख सुख 

सभ उमीदें , सभ धड़कने , सभ कल्पनाएं 

सभ हकीकतें ,सभ कविताएं सभ कहानीआ

उसी एक के नाम आज के साँस भी ,आज का दिन भी 

भले दूर रहे जा पास ,जीवित रहेगा मेरा विशवास  

   अमरीक बिरहडा 


मेरा दोस्त वड़ा निराला है 

बड़ा प्यारा भोला भाला है 

वोह दूर बैठ  के कहता है 

आने वाला पल जाने वाला है। 

भाषा कोई नई सिखाता है 

हमे कुछ समझ ना आता है 

आँखों से वोह बातें करता है

ज़ुबान पर उसकी ताला है। 

क्या शक्ती उसकी यादों में 

शब्दों में हम क्या करें बयान 

मुर्दा को  जीवित कीया है 

जीवित को मार डाला है। 

जब जब वोह मुसकाता है 

फिर जीने को मन करता है 

ताजुब है मुस्कान में उसकी 

इतना क्यों उजाला है। 

  ---- अमरीक बिरहडा    


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अभी तक तुम्हे सिर्फ इतना जानता हूँ 

वहते हुए पानी को देखता हूँ 

तो तुम्हे समुंदर मानता हूँ। 

पानी तो वहता जाएगा 

अपनी मंज़िल की तरफ 

एक मैं हूँ जो दिशाहीन 

राहों की खाक छानता हूँ। 

हिन्दी अनुवाद  - Poetry जसवंत ज़फ़र 

दिशा को ठीक रखन लई 

ते सोहनी चाल रखन लई 

मैं तुहानू प्यार करदा हाँ 

अपना ख्याल रखन लई 



एक वार गले मिलने का मौका दो तो जानो 

प्यार में बन्दगी का  सरूर क्या है। 

जब प्यार  कीया  है  सच्ची  लगन से 

तो अपनी अलग हस्ती होने का गरूर क्या है। 

मुझे तो तुम्हारी डांट भी प्यारी लगती है 

सभ कुछ अच्छा लगे जाने प्यार का फितूर क्या है।  

दूर रह कर वोह शिकायत करते हैं पास आते नहीं 

प्यार और दर्द  दोनों ही दते हैं   जाने हसीनाओं का  दसतूर  क्या है। 

ना  मिलने की शिकायत करते हैं मुझसे 

वोह हैं कहाँ बताते ही नहीं ,अब इसमें हमारा कसूर क्या है। 

 

ज़िंदगी के लक्ष्य तुम बिन हैं अर्थहीन 

रोज़ाना कोशिश करता हूँ  तुम्हे ढूढ़ने की 

इतना तो होगा आपको भी यकीन 

आप साथ हो तो सौ दुखों में आनन्द का अनुभव 

बिन आपके कुछ नहीं लगता हसीन 

काश आप मेरे कदम से कदम मिलाओ 

Black & White है जो आजकल ज़िन्दगी फिर से लगे रंगीन 

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अपने  दोषी  पर रहम कीजिए 

छोड़िएगा मत इसको 

उम्र कैद की सज़ा दीजिए    

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जब भी तेरा दीदार होवेगा 

झल दिल का बीमार होवेगा 

किसी भी जनम आकर देख लेना 

तुम्हारा ही इंतज़ार होवेगा 

आज पिआनो  Backyard में ही ले जानी है 

 --  शिव कुमार बटालवी  ਸ਼ਿਵ ਕੁਮਾਰ ਬਟਾਲਵੀ 


कहाँ हो तुम मुझे पता भी तो नहीं 

जुदा तो दुनिया ने कीया है हम दोनों को 

हमारी तुम्हारी ख़ता भी तो नहीं 

ना चिहरा देखा ना आवाज़ ही सुनी 

हमें अब  कुछ भाता भी तो नहीं 

दिमाग पहले से बन्द था 

अब आँखें और कान भी हड़ताल पर हैं 

अब तो रोज़ गाता भी तो नहीं 

चले आओ यार तुम खुद ही 

हमें इंतज़ार के इलावा कुछ आता भी तो नहीं 

   -- बिरहड़ा 

लाला जी लाला जी  कैसे हैं गोपाला जी 

गुस्सा अपना छोड़ दीजिए  क्र दीजिए  ज़रा उजाला जी 

आईए बैठ परवार के साथ पीजिए चाय का प्याला जी 

कयों करते हो इतना संदेह सीधे साधे बन्दे पर 

साफ़ हूँ दिल से हिस्टरी देखो  कीया ना  कोई घोटाला जी 

कयों पूजें पथर की मूरत  इनसान में रब्ब है अगर 

जीते जागते धड़कते दिल को  बना दें नया शिवाला जी 


मेरे पीछे पीछे आ जाते, तो दरिया किनारे हम जाते 

पतझड़ के कुछ रंग सुनहरी वहता पानी दिखलाते 

साथ में होते उड़ते पंछी , ताज़ी   हवा पेड़ ख़ुशी में लहराते 

तैरते हुए दरिया में कुछ Mallard  ducks 

मस्ती करते डुबकी मार के नहलाते 

प्यार का मौसम ,सकूंन  रूह का साथ में होते 

सभ कुछ हसीन हो जाता ,सभ मौसम आते जाते 

इक मुण्डा जिहदा नाम बिरहड़ा 

गुम है  गुम है गुम है 

सीधा साधा पगला कहीं का 

गुम है  गुम है गुम है 

सूरत से वोह मजनू लगदा 

सीरत से वोह शायर लगदा 

मधरा कद का नैन सुनखे 

मुस्काये तो  वाहला  फबदा 

 छोड़ कर सारे काम झमेले 

पता नहीं किसको रहन्दा लभदा 

गुम हुए दो साल ने हो गए 

पहलों  किहड़ा होश च सी वोह

इक्क्ले बैठ के कभी है रोता 

कभी यह हसदा भंगड़ा पाउँदा 

हसदा ए  तां सारे ही हसदे 

 रोंदा है तो बेबी लगदा 

उएन  उएन उएन 

मंने ना खानी  रोटी पहले मेरे दोस्त को लेकर आओ 

अमरीक तुम्हारा problem कया है चलो चुप चाप रोटी खाओ 

ठीक है जी खा लेता हूँ  आप please गुस्सा मत होना 

मेरे दिल में दर्द होता है 

तो मैं क्या करूँ 

आपने यही बात थोड़ा कोमल अंदाज़ में बोली होती 

हम आपकी कोई सहायता करें   - ऐसा बोलते  तो कितना musical होता 

मैं  बोलता Please  कीजिये ना सहायता 

अमरीक इतना नौटँकी काहे को करता है बाबा 

उएन  उएन उएन 

मेरे को नौटँकी बोला  जा मंने ना  करनी तुमसे बात 

अरे यार रूको  गुस्से में बोल दिए बाबा 

Please मेरे से बात कीजिये ना  - मुस्कुरा देता हूँ हाँ 

ज़मीं पे ढूंढता हूँ आसमां पे ढूढ़ता हूँ 

चारों दिशाओं में  जाता हूँ  मैं 

तुम्हे मैं पूरे जहाँ में ढूढ़ता हूँ। 

चाँद पे जाता हूँ , मंगल पे जाता हूँ 

जाने तुम्हे  कहाँ कहाँ ढूढ़ता हूँ। 

सरदी हो तो धुप में ढूढंता हूँ 

गर्मी हो तो जाकर छाँव में  ढूढंता हूँ। 

बैठे हो तुम मेरे दिल में बस  कर 

जाने तुम्हे क्यों जहाँ वहाँ ढूढंता हूँ। 

 ---  अमरीक बिरहड़ा 

बुधु कह लो , कमअकल कह लो 

और जो भी मन में  आए कह लो 

बस  बेवफ़ा मत कहना 


तुम ही मेरी कविता हो 

तुमने मुझे भावनाओं को वयक्त करना सिखाया 

तुम ही मेरी प्रेरणा हो 

तुमने मुझे कुछ सीखने को प्रेरित कीया 

तुम ही मेरी कलपना हो 

तुमने मुझे सपने देखना सिखाया 

(visualize, Imagine करना सिखाया )

तुम ही मेरी उपासना हो

तुम्हारा ही धयान लगाता हूँ 

तुम ही मेरी आराधना हो 

तुम्हारा ही पूजन करता हूँ 

तुम ही मेरी साधना हो 

तुम्हारा ही एहसास रहता है 

तुम ही मेरी संवेदना हो 

तुम्हारी सहानुभूति से जीता हूँ 

तुम ही मेरी आशा हो 

तुम्हारी वजह से ही आशावान हूँ 

  ----- अमरीक बिरहड़ा 


जब तक दिल समझा नहीं लेते 

तुम हमको अपना नहीं लेते 

रोज़  यादों में आऊंगा 

रोज़ ख़ाबों में आऊंगा 

अब तुम ही मिलने की  कोशिश करना 

मैं  उसमे कदम मिलाऊँगा 

----- अमरीक बिरहड़ा 

दरिया किनारे बैठा 

बहते हुए पानी को देख रहा था 

तो महसूस कीया 

पानी तो हर पल बढ़ रहा है 

अपनी मज़िल की तरफ़ 

कभी तो जा मिलेगा समुंदर से 

पर मेरी मज़िल कहाँ है 

मुझे तो कोई ज्ञान ही नहीं 

कितने दिन यही शबद वार वार बोलता रहा 

जब भी दरिया किनारे जाता 

एक दिन  अंदर से आवाज़ आई 

पगले तेरी मंज़िल तेरी धड़कन में समा गई है 

महसूस करो उसे दिल की हर धड़कन में 

आती जाती हर सांस में 

बाहर कब तक ढूढ़ते रहोगे 

समा जाओ इसी एहसास में 

के तुम और मज़िल अब दो नहीं एक ही हो